प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

3 जुलाई 1955 को जन्मे श्री प्रशांत कुमार शाही, माननीय महाधिवक्ता, बिहार बचपन से ही शिक्षा और जनसेवा के प्रति गहरी रुचि रखते थे। ज्ञान की खोज उन्हें भारत के प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक, काशी हिंदू विश्वविद्यालय (B.H.U.) तक ले गई, जहाँ उन्होंने विधि संकाय में प्रवेश लिया। वर्ष 1979 में उन्होंने सफलतापूर्वक विधि स्नातक की उपाधि प्राप्त की, जिससे परिश्रम, ईमानदारी और बौद्धिक क्षमता से युक्त उनके विधिक करियर की नींव रखी गई।

विधिक करियर की शुरुआत

विधि अध्ययन पूरा करने के बाद, उन्होंने वर्ष 1980 में बार काउंसिल में नामांकन कराया। करियर के शुरुआती दौर से ही उन्होंने स्पष्ट सोच, मजबूत वकालती कौशल और कानून पर असाधारण पकड़ का प्रदर्शन किया। विविध प्रकार के मामलों की पैरवी ने उन्हें शीघ्र ही बिहार की विधिक बिरादरी में एक विश्वसनीय और सक्षम अधिवक्ता के रूप में स्थापित कर दिया।

सरकारी अधिवक्ता के रूप में मान्यता

वर्ष 1990 में, अपेक्षाकृत कम आयु में ही, उन्हें एक ऐतिहासिक उपलब्धि प्राप्त हुई जब वे पटना उच्च न्यायालय में बिहार राज्य के सरकारी अधिवक्ता (Government Pleader) नियुक्त हुए। यह नियुक्ति दुर्लभ सम्मान थी क्योंकि वे इस पद को संभालने वाले अब तक के सबसे युवा अधिवक्ता बने। इस भूमिका में उन्होंने शासन, सार्वजनिक प्रशासन और संवैधानिक कानून से जुड़े अनेक महत्वपूर्ण मामलों में राज्य का प्रतिनिधित्व किया।

विस्तारित विधिक प्रैक्टिस

अपने आधिकारिक दायित्वों के साथ-साथ, उन्होंने कई प्रतिष्ठित संस्थानों, सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों और निजी संगठनों की ओर से भी वकालत की। उनकी प्रैक्टिस केवल कानून की गहरी समझ तक सीमित नहीं रही, बल्कि उन्होंने जटिल विवादों को निष्पक्षता और स्पष्टता के साथ सुलझाने की क्षमता भी प्रदर्शित की।

केंद्र सरकार एवं रेलवे के स्थायी अधिवक्ता

एक उत्कृष्ट और विश्वसनीय अधिवक्ता के रूप में उनकी बढ़ती प्रतिष्ठा ने उन्हें वर्ष 2001 में भारत सरकार का वरिष्ठ स्थायी अधिवक्ता (Senior Standing Counsel) बना दिया। इस भूमिका में उन्होंने केंद्र सरकार का महत्वपूर्ण मामलों में प्रतिनिधित्व किया। उन्हें भारतीय रेलवे के वरिष्ठ स्थायी अधिवक्ता के रूप में भी जिम्मेदारी सौंपी गई, जहाँ उन्होंने देश के सबसे बड़े संगठनों में से एक का अनेक मामलों में सफलतापूर्वक प्रतिनिधित्व किया।

महाधिवक्ता के रूप में नियुक्ति

25 नवम्बर 2005 को वे बिहार राज्य के महाधिवक्ता नियुक्त हुए, जो राज्य का सर्वोच्च विधिक पद है और राज्य सरकार के प्रधान विधिक सलाहकार होते हैं। वर्ष 2006 में उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया, जिससे उनकी विधिक उत्कृष्टता और भी प्रकट हुई। 24 नवम्बर 2010 तक उन्होंने इस पद पर रहते हुए संवैधानिक, प्रशासनिक और राजस्व मामलों में राज्य सरकार को विधिक मार्गदर्शन प्रदान किया।

मंत्री के रूप में जनसेवा

अपने विधिक करियर के समानांतर, उन्होंने जनसेवा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे बिहार सरकार की मंत्रिपरिषद में शामिल हुए और शिक्षा विभाग का दायित्व संभाला। यहाँ उन्होंने बिहार की शैक्षणिक नीतियों को सुदृढ़ बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वर्ष 2013 में उन्हें एक साथ तीन महत्वपूर्ण विभागों—पर्यावरण एवं वन, योजना एवं विकास और शिक्षा—की जिम्मेदारी सौंपी गई। 2014 में उन्हें पुनः शिक्षा विभाग के साथ अन्य विभागों का कार्यभार भी दिया गया। उन्होंने 24 नवम्बर 2015 तक कैबिनेट मंत्री के रूप में अपनी सेवाएँ दीं।

विधिक क्षेत्र में वापसी

जनप्रशासन में अपनी सेवाएँ पूर्ण करने के बाद, जनवरी 2016 में वे पुनः विधिक पेशे में लौटे। एक विधिक विशेषज्ञ और नीति-निर्माता दोनों रूपों के अनुभव के साथ, उन्होंने अपने कार्य को नए दृष्टिकोण से आगे बढ़ाया। विभिन्न मामलों की पैरवी करते हुए उनकी विधिक यात्रा और ऊँचाई पर पहुँची।

महाधिवक्ता के रूप में पुनर्नियुक्ति

अपने व्यापक अनुभव, गहन विधिक समझ और उत्कृष्ट योगदान को देखते हुए, उन्हें 16 जनवरी 2023 को पुनः बिहार राज्य का महाधिवक्ता नियुक्त किया गया। तब से अब तक वे राज्य के सर्वोच्च विधिक पदाधिकारी के रूप में अत्यंत निष्ठा से अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं। वे सरकार को सटीक और प्रभावी विधिक परामर्श प्रदान करते हैं और नीतियों व कार्यक्रमों को विधिसम्मत रूप से लागू कराने में मार्गदर्शन करते हैं। राज्य की नौकरशाही उनके त्वरित और गहन विधिक ज्ञान की अत्यधिक सराहना करती है।

विरासत और योगदान

बी.एच.यू. से स्नातक एक युवा विधि छात्र से लेकर बिहार के महाधिवक्ता और कभी मंत्री तक की उनकी गौरवशाली यात्रा व्यावसायिक उत्कृष्टता, नैतिक आचरण और जनसेवा के प्रति अटूट समर्पण से चिह्नित है। उन्होंने दशकों तक केंद्र और राज्य सरकारों, सार्वजनिक क्षेत्र की प्रमुख इकाइयों और प्रतिष्ठित संस्थाओं का समान कौशल और निष्ठा के साथ प्रतिनिधित्व किया। नीति-निर्माता के रूप में उनका योगदान, विशेषकर शिक्षा, पर्यावरण और विकास योजनाओं में, बिहार की शासन-व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अध्याय रहा है।

आज भी, माननीय महाधिवक्ता के रूप में, वे अपने विद्वत्तापूर्ण दृष्टिकोण, गरिमा और न्याय के प्रति अथक सेवा से विधिक समुदाय को प्रेरित करते हैं।